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बिलासपुर

एनटीपीसी सीपत में राखड उपयोगिता बढ़ाने तथा रा खड़ डैम में अस्थाई धूल उत्सर्जन को नियंत्रित की लिए पहल

Jp agrawal
Last updated: 2023/04/30 at 7:32 AM
Jp agrawal Published 30/04/2023
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बिलासपुर।एनटीपीसी सीपत कोयला आधारित बिजली संयंत्र है, जहां बिजली उत्पादन के दौरान सह उत्पाद के रूप में राखड़ उत्पन्न होता है। कोयला दहन से सह-उत्पाद के रूप में निकलने वाला राखड़ दो श्रेणियों बॉटम ऐश और फ्लाई ऐश के अंतर्गत आता है।
राख का 100% प्रतिशत उपयोगिता बढ़ाने के लिए एनटीपीसी द्वारा विभिन्न अनुसंधान किए जा रहे हैं और एनटीपीसी सीपत में भी राख उपयोगिता बढ़ाने के लिए कई नवोन्मेषी पहल किया जा रहा है, जिसके अंतर्गत लाइट वेट एग्रीगेट्स, ऐश टू सैंड प्रोजेक्ट, जियो पॉलीमर कंक्रीट रोड और नैनो कंक्रीट एग्रीगेट और राख ईंट निर्माण संयंत्र की स्थापना की गई है। .
विभिन्न निर्माण उद्योग में राख के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एनटीपीसी में पहली बार ये पहल की गई थी ताकि उपयोगी मिट्टी,पत्थर को काफी हद तक कम किया जा सके, यानी ईंटों के निर्माण के लिए ऊपरी मिट्टी की खुदाई को रोका जा सके और फ्लाई ऐश के उपयोग को बढ़ावा दिया जा सके।
इसके अलावा, एनटीपीसी सीपत रेलवे वैगनों में राख लोड करने और थोक में राख भेजने के लिए रेल लोडिंग सुविधा की स्थापना के साथ बड़े पैमाने पर राख के उपयोग को बढ़ाने का भी प्रयास कर रहा है। कंपनी ने मानिकपुर कोरबा में खाली पड़े एक कोयला खदान में राख (बैकफिलिंग/स्टोइंग) के लिए समझौता ज्ञापन पर भी हस्ताक्षर किया है।
इनके अलावा एनटीपीसी सीपत एनएचएआई की बिलासपुर-पथरापाली और रायपुर-कोडेबाद जैसी परियोजनाओं को राख की आपूर्ति करता है। वर्तमान में, यह रायपुर-धमतरी, बिलासपुर-उरगा और रायपुर-विशाखापत्तनम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण I परियोजनाओं में राख की आपूर्ति कर रहा है।
एनटीपीसी सीपत में 3 ऐश डाइक हैं। इन क्षेत्रों में अस्थायी धूल उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए विभिन्न पहल की जा रही हैं। जिसमें मुख्य है राख की धूल को रोकने के लिए फॉग कैनन का उपयोग, मिट्टी को रोकने के लिए बेशरम वृक्षारोपण, राख के पानी के पुनर्चक्रण पाइपों से डिस्चार्ज लेने के लिए स्प्रिंकलर सिस्टम की स्थापना , राख की सतह को तिरपाल शीट से ढंकना, पवन अवरोधकों की स्थापना, तालाब बनाना इत्यादि।
राखड़ बांध से राख के परिवहन में लगे वाहनों में तिरपाल ढँककर परिवहन किया जाता है, साथ ही परिवहन मार्ग पर निरंतर पानी का छिड़काव कर धूल एवं राख को उड़ने से बचाया जाता है। जिससे आसपास के वातावरण को स्वच्छ रखा जा सके।
लैगून की अधिकतम सतह को जलमग्न रखने के लिए लैगून में जल स्तर को बनाए रखा जाता है और सतह को नम रखने के लिए लैगून की खुली सतह पर पानी छिड़कने के लिए टैंकरों को भी लगाने का प्रस्ताव है।
हाल ही में, एनटीपीसी द्वारा निरंतर अनुवर्ती कार्रवाई पर, सीईसीबी (छत्तीसगढ़ पर्यावरण संरक्षण बोर्ड) ने एनटीपीसी को बिश्रामपुर और दुग्गा खानों में राख की डंपिंग के लिए क्रमशः 4.99 एलएमटी और 48.9 एलएमटी की खुली खदानों का आवंटन किया है। इसके बाद, इन खदानों में जल्द से जल्द राख भरने के लिए पर्यावरण अध्ययन, राख परिवहन के आरसीआर मोड के लिए पीआर बढ़ाने, समझौता ज्ञापन आदि पर हस्ताक्षर करने जैसी गतिविधियां शुरू की जा चुकी हैं।
इन प्रयासों से आने वाले समय में राखड़ उपयोग के लक्ष्य को प्राप्त करने एमओईएफ अधिसूचना का अनुपालन करने तथा सभी मोर्चो पर राखड़ उपयोग को बढ़ावा देने के लिए एनटीपीसी सीपत के द्वारा किए जा रहे विभिन्न प्रयासों का सार्थक परिणाम प्राप्त होगा।

Jp agrawal

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